American Dollar : अमेरिकी डॉलर की मजबूती दुनिया के लिए मुसीबत क्यों है ?
डोनाल्ड ट्रंप के जीत के बाद अमेरिकी डॉलर नई ऊंचाइयां छू रहा है। और भारतीय रुपया लगातार गिर रहा है और रुपए को बड़ी चपत लगी है। विदेशी निवेशक भी शेयर बाजार में नवंबर के महीने में 3 लाख करोड़ की बिकवाली कर गए। बाजार बेचारा क्या करें?
डॉलर की एक सच्चाई यह भी है कि डॉलर को हर कोई चाहता तो है लेकिन डॉलर की मजबूती को कोई नहीं चाहता। ट्रंप जब जीते तो डॉलर और अमेरिकी शेयर बाजार एक साथ तेजी की सलामी देने लगे, बाजार को लगा ट्रंप आए हैं सरकार का खर्च बढ़ेगा ब्याज दरें कम होने के संकेत मिल ही रहे हैं अब ग्रोथ लौटेगी तो कंपनियां चमकेगी ।
ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद यह वादा किया की वह अमरीकी उद्योगों की क्षमताएं बढ़ाने के लिए आयात महंगा करेंगे, इंपोर्ट पर 25 फ़ीसदी ड्यूटी लगा देंगे। पिछले कार्यकाल में वह ऐसा कर चुके हैं यह फैसला दुनिया में अमेरिका बनाम चीन यूरोप और कनाडा की ट्रेड वार शुरू करेगा। इन देशों को अमेरिका से आयात महंगा करना होगा ।
अमेरिकी उपभोक्ता बाजार आयत पर निर्भर है वह सबसे बड़ा आयातक है बीते साल अमेरिका की कुल इंपोर्ट 32 अरब डॉलर था। यह भारत के विदेशी मुद्रा भंडार ( नवम्बर 2024 ) के पांच गुना से भी ज्यादा है । इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने का मतलब इंपोर्टेड महंगाई, ट्रंप की जीत के बाद अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने कहा कि ब्याज दरों में कमी की गति धीमी पड़ सकती है। क्योंकि महंगे आयत से अमेरिका में महंगाई को नई धार मिल जाएगी । तभी तो ट्रंप की जीत के बाद से डॉलर इंडेक्स दो फीसदी बड़ चुका है । चीन का युवान 4 महीने के न्यूनतम स्तर पर है रुपया गिरने के नए रिकॉर्ड बना रहा है एसबीआई ने कहा है कि ट्रंप के अगले 4 वर्षों में रुपए 10 फीसदी तक कमजोर हो सकता है।
अमेरिकी महंगाई बढ़ने का मतलब है डॉलर की मजबूती मजबूर डॉलर यानी दुनिया में आफत । विश्व में 60 फ़ीसदी व्यापार का लेनदेन अमेरिकी डॉलर में होता है इसमें अमेरिका से होने वाला व्यापार शामिल नहीं है। मजबूर डॉलर से आयात महंगा होता है तो मांग टूटती है अगर डॉलर एक फीसदी मजबूत होता है तो दुनिया की देश के व्यापार में करीब 0.6 फीसदी की कमी आती है मजबूत डॉलर दुनिया में मंदी की वजह बन सकता है ।