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Good news for handicap : अब दिमाग से चलेगा कृत्रिम पैर

Good news for handicap : अब दिमाग से चलेगा कृत्रिम पैर

दिव्यांगों के लिए कृत्रिम पैर तो काफी पहले बन चुके, लेकिन उनमें असली पैरों जैसा लचीलापन और अहसास नहीं था। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने अब ऐसे कृत्रिम पैर तैयार किए हैं, जो दिमाग से नियंत्रित होंगे और वास्तविक भी लगेंगे।

जब कोई व्यक्ति शरीर का कोई अंग खो देता है तो उसके सामने कई तरह की कठिनाइयां आती हैं। अंगों की कार्यक्षमता और गतिशीलता की भरपाई के लिए जीवनशैली में कई बदलाब करने पड़ते हैं। कृत्रिम अंग कुछ मददगार होते हैं, लेकिन उनकी भी अपनी सीमाएं होती है। आखिर, वे एक तरह की मशीन ही होते हैं, जिनके साथ कई तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती है. खासकर पैरों को लेकर ज्यादा परेशानी होती है। दिव्यांगों की इन्हीं दिक्कतों को दूर करने और वास्तविक अंगों जैसी गतिशीलता एवं सहजता लाने की दिशा में अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) के वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है। अब जैविक पैर की तरह कृत्रिम पैरों को दिमाग से नियंत्रित किया जा सकेगा। इससे कृत्रिम पैर की चाल और गति में काफी सुधार होगा। दिव्यांग व्यक्ति अधिक सहजता और आराम के साथ चल सकेंगे। एगोनिस्टिक- एंटागोनिस्टिक मायोन्यूरल इंटरफेस (एएमआई) नामक यह तकनीक दिव्यांगों की दुनिया को पूरी तरह बदल सकती है।

आसानी से चढ़ सकेंगे सीढ़ी

इस तकनीक से दिव्यांग पारंपरिक कृत्रिम अंगों की तुलना में ज्यादा स्वाभाविक तरीके से सीदिगा चढ़ सकेंगे। साथ ही अलग-अलग शारीरिक गतिविधियां भी कर सकेंगे। एएमआई को विकसित करने में टीम के सदस्य और दोनों पैर से दिव्यांग डॉ. ह्यूग हेर ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह दिव्यांगों के सामने आने वाली कठिनाइयों से व्यक्तिगत स्तर पर भी जूझ रहे थे। ऐसे में इसको दिव्यागों के अनुकूल बनाने में उनका अहम योगदान रहा।

रियल टाइम कंट्रोल

मस्तिष्क नियंत्रित इन कृत्रिम पैरों से दिमाग तक विचारों का संचार होता है, जिससे दिव्यांग अपनी गति को समायोजित कर सकते हैं। मस्तिष्क ये सब रियल टाइम में कंट्रोल करता है। इससे चलने में किसी तरह की परेशानी नहीं आती है। इन कृत्रिम पैरों की शरीर को लेकर सजगता इनको खास बनाती है। इससे ये शरीर के सभी अंगों की स्थिति और गति के अनुसार कार्य करते हैं। पारंपरिक कृत्रिम अंगों में यह खूबी नहीं होती है, जिससे अक्सर व्यक्ति असंतुलित हो जाता है। साथ ही शरीर के अन्य हिस्सों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।

 

कैसे करते हैं काम

एगोनिस्टिक-एंटागोनिस्टिक मायोन्यूरल इंटरफेस सर्जरी दो चरणों में होती है। पहले अंग को शरीर से हटाने के दौरान होती है। इसमें डॉक्टर पिंडली की मांसपेशियों के अवशेषों को संरक्षित करते हैं। बाद में कृत्रिम अंग लगाने की दूसरी सर्जरी के दौरान कटी हुई नसों को स्वस्थ मांसपेशियों से जोड़ा जाता है। इससे कृत्रिम अंग अधिक गतिशील रूप से चलने में सक्षम हो जाते हैं। मस्तिष्क के संकेतों को स्वस्थ मांसपेशी ऊतकों से कृत्रिम अंगों में भेजा जाता है। इसके बाद एक इलेक्ट्रोड को शेष मांसपेशियों के तंत्रिका तंत्र से जोड़ दिया जाता है। इससे पिंडली की मांसपेशियों तक तंत्रिका की गतिविधि को मापा जाता है। पैर में लगी एक छोटा सी कंप्यूटर चिप, तंत्रिका संकेतों को डिकोड कर पैर को चलाता है, जिससे दिव्यांग अधिक अच्छे ढंग से काम कर पाते हैं। शोध के शुरुआती चरण में सात लोग शामिल थे, जिनमें सर्जरी के बाद आमूलचूल परिवर्तन देखे गए ।

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