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India China Conflict : चीन के रुख में बदलाव की वजह ट्रंप तो नहीं

चार साल बाद जिस तरह चीन ने भारत को लेकर अपने रुख में बदलाव के संकेत दिए हैं, उसके पीछे कहीं डोनाल्ड ट्रंप की वापसी की संभावना तो काम नहीं कर रही ? कौन बनेगा अमेरिका का नया राष्ट्रपति, यह तो पांच नवंबर के बाद ही पता चलेगा, लेकिन अमेरिका के बाहर ट्रंप को लेकर आम सहमति दिख रही है।

बीजिंग में रात के आठ, नई दिल्ली में शाम के साढ़े पांच, रूस के कजान में दोपहर के तीन और वाशिंगटन डीसी में सुबह के आठ बज रहे थे। दुनिया भर के लोग दम साधे अपनी नजर टीवी स्क्रीन पर गड़ाए हुए थे, क्योंकि दुनिया की एक तिहाई आबादी वाले दो देशों के नेता इस क्षण आपस में मिल रहे थे। चीन की विस्तारवादी नीति के कारण पांच वर्षों तक चले विवाद के बाद पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पहली बार द्विपक्षीय बैठक हुई। यह आकलन करना अभी जल्दबाजी होगी कि यह समझौता लंबे समय तक चलेगा या नहीं, हालांकि दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गश्त लगाने पर सहमति जताई है और तनाव कम करने की बात कही है। बड़ा सवाल यह है कि चीन के नजरिये में बदलाव की वजह क्या है, खासकर इसलिए कि यह समझौता चार साल से ज्यादा समय से खटाई में पड़ा हुआ था। इसका जवाब मौजूदा परिस्थितियों में निहित है। चीनी अर्थव्यवस्था में गिरावट के साथ-साथ ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने की संभावना भी बढ़ गई है। चीन के लिए ट्रंप 2.0 का जोखिम वास्तविक है।

वर्ष 2021 में कोविड खत्म होने के बाद से चीन का सकल घरेलू उत्पाद 7.9 प्रतिशत को पार नहीं कर पाया है, जो वर्ष 2012 में शी जिनपिंग के सत्ता संभालने के वर्ष दर्ज किया गया था। आंकड़े बताते हैं कि इस साल के पहले नौ महीने में चीन की अर्थव्यवस्था 4.8 फीसदी की दर से बढ़ रही है और तीसरी तिमाही की विकास दर पिछली छह तिमाहियों में सबसे सुस्त है। बुजुर्ग होती आबादी, बचत में कमी और रियल एस्टेट की बदहाली ने खपत और युवा रोजगार को प्रभावित किया है। इस हफ्ते 32 लाख चीनी युवाओं ने 39,700 सरकारी पदों के लिए आवेदन किया है। उम्मीदें देश की विनिर्माण क्षमता पर टिकी हैं, जो इसकी जीडीपी में एक चौथाई का योगदान करती है। लेकिन इसका फायदा उठाने के लिए चीन को बाजार की जरूरत है।

वर्ष 2023-24 में चीन से भारत के आयात का बिल 101 अरब डॉलर था। ट्रंप ने शिकागो इकनॉमिक क्लब में कहा कि शब्दकोश में सबसे खूबसूरत शब्द है ‘टैरिफ’। उन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था के आकार का लाभ उठाने और सभी अमेरिकी आयातों पर 10-20 प्रतिशत टैरिफ लगाने और सभी चीनी आयातों पर 60 प्रतिशत टैरिफ लगाने की योजना बनाई है। वर्ष 2023 में, अमेरिकी आयात का कुल मूल्य 33.5 खरब डॉलर था, जिसमें से चीन का हिस्सा 47 अरब प्रति माह या लगभग 550 अरब डॉलर था। चीन पहले से ही भारी टैरिफ का सामना कर रहा है, और निवेश पर निगरानी व अमेरिका के दोनों दलों की मजबूत नाराजगी तथा पीड़ा का निशाना बना हुआ है।

चीन द्वारा बाजारों पर कब्जा करने के लिए निवेश और फैक्टरियों को स्थानांतरित करने का छद्म तरीका अब कोई रहस्य नहीं रहा है। अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के रूप में मेक्सिको के उदय ने उसके दक्षिणी पड़ोसी की निगरानी बढ़ा दी है, जिसने चीनी कंपनियों तक से निवेश आकर्षित किया है। ट्रंप ने मेक्सिको में बनी कार पर 200 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी दी है, हालांकि अमेरिका पहले से ही मेक्सिको से ऑटोमोटिव आयात की समीक्षा कर रहा है। टैरिफ का शिकंजा कसने के मामले में ट्रंप ने किसी को नहीं बख्शा है। उसने भारत को ‘सबसे अधिक टैरिफ लगाने वाला’ बताकर पारस्परिक कार्रवाई की कसम खाई है और जापानी निप्पॉन स्टील द्वारा यूएस स्टील के अधिग्रहण को रोकने का संकल्प लिया है। ट्रंप ने ‘यूरोपीय संघ’ से भी टैरिफ के लिए तैयार रहने को कहा है, जिसने वर्ष 2023 में अमेरिकी आयात में 542 अरब डॉलर का योगदान दिया। जैसा कि अनुमान था, इसने पूरे यूरोप में हलचल मचा दी, विशेष रूप से जर्मनी और फ्रांस में। ट्रंप ने शिकागो में आलोचना, थिंक टैंकों के अध्ययनों और विश्व अर्थव्यवस्था में संकुचन की आईएमएफ की चेतावनियों को बड़ी ही बेबाकी से खारिज कर दिया है। ट्रंप की संभावित वापसी के चलते जोखिमों से बचने के लिए विभिन्न देशों ने व्यापार-संतुलन एवं पूर्व-निवारक कदमों की खोज शुरू कर दी है। पिछले महीने राष्ट्रपति बोलोदिमीर जेलेंस्की ने यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने के लिए ट्रंप की योजनाओं को समझने की खातिर समय मांगा था। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर भी अमेरिका और ब्रिटेन के बीच विशेष संबंधों को रेखांकित करने के लिए उनसे मिलना चाहते थे, जो सफल नहीं हुआ, क्योंकि ट्रंप की टीम ने स्टार्मर की लेबर पार्टी के खिलाफ एक असाधारण शिकायत दर्ज करके अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ‘हस्तक्षेप’ का आरोप लगाया है। इस सप्ताह जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए नई दिल्ली में थे।

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