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जानिए उत्तराखंड के चारों धामों का इतिहास : एक नजर में

जानिए उत्तराखंड के चारों धामों का इतिहास : एक नजर में

उत्तराखंड के चार धाम

उत्तराखंड के चार धाम भारत के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है बद्रीनाथ , केदारनाथ ,गंगोत्री और यमुनोत्री मिलकर चार धाम बनाते हैं । जीवित अवस्था में लोगों को एक बार यहां जरूर जाना चाहिए या चारों धामों की यात्रा जरूर करनी चाहिए । यहां आपको एक सुकून मिलेगा जो दुनिया के किसी भी कोने में नही है । ऋग्वेद में तो उत्तराखंड को धरती का स्वर्ग कहा गया है । पांडव भी पश्चाताप के लिए उत्तराखण्ड ही आये थे ।

 

 

1. केदारनाथ का इतिहास – शिवजी ने इस धाम का इतिहास भगवान विष्णु के अवतार नर – नारायण, पांडव व आदि गुरु शंकराचार्य से जुड़ा है

यहा हर साल लाखो सैलानी आते है बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने केदारनाथ मंदिर का दर्शन करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्युकी लगभग 21 किमी पैदल चलकर आप बाबा के दर्शन कर सकते है

केदारनाथ मंदिर हिमालयी क्षेत्र में पड़ता है इसलिए शीत ऋतु के समय 6 महीने तक बंद रहता है क्युकी मंदिर परिसर पुरा बर्फ से ढक जाता है ।

2 . बद्रीनाथ :  मां लक्ष्मी की नाराजगी खत्म हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आए उस समय स्थान पर बद्री का वन यानी बेड फल का जंगल था बद्री के वन में बैठकर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी इसलिए मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दिया ।

बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है

3. गंगोत्री :  गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरख कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18वीं शताब्दी की शुरुआत में किया गया था। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था प्रत्येक वर्ष में से अक्टूबर के महीने के बीच पथिक पावनी गंगा मैया के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु  यहां आते हैं ।

गंगोत्री गंगा नदी के उद्गम स्थान है एवं उत्तराखंड के चार धाम तीर्थ यात्रा में चार स्थानों में से एक है नदी के स्रोत को भागीरथी कहा जाता है और देवप्रयाग के बाद से यह अलाकंनंदा से मिलती है जहां से गंगा नाम कहलाती है ।

4. यमनोत्री : यमुनोत्री धाम सकल शिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है पुराणों में उल्लेख है कि भगवान श्री कृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी यमुना भी है यमुना के भाई शनिदेव का अत्यंत प्राचीनतम मंदिर खरसाली में है अक्षर तृतीया के दिन खुलते हैं और दिवाली के दूसरे दिन बंद कर दिया जाता है ।

एस्ट्रो स्वामी जी के मुताबिक शुरुआत में मंदिर को टिहरी नरेश ने 1839 में बनवाया था । लेकिन दुर्भाग्य वश यमुनोत्री के बाढ़ की चपेट में आ गया था जिसके बाद मंदिर का निर्माण पूर्ण रूप से 19वीं शताब्दी में जयपुर के महारानी गुलरिया और टिहरी गढ़वाल के राजा प्रताप नरेश ने अपनी पुरी निष्ठा और भक्ति के साथ पूरा करवाया ।

उत्तरकाशी के मुताबिक यमुनोत्री यमुना नदी का स्रोत और हिंदू धर्म में देवी यमुना का स्थान है । यह उत्तरकाशी जिले में गढ़वाल हिमालय में 3,293 मीटर 10,804 फीट की ऊंचाई पर स्थित है  यह उत्तराखंड की चार धाम यात्रा के चार स्थलों में से एक है ।

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