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 Pindari Glacier : 60 साल में  आधा किलोमीटर  खिसका पिंडारी  ग्लेशियर                                 

 पहले जहां से शुरू होती थी बर्फ, अब वहां दिख रहे भुरभुरे पहाड़, वन्य जीव-जंतुओं पर भी पड़ रहा असर

ग्लेशियरों की यात्रा रोमांच जगाने के साथ-साथ प्रकृति से जुड़ने का माध्यम होती हैं लेकिन बढ़ते मानव दखल से ग्लेशियर संकट में हैं। ग्लेशियर पीछे की ओर खिसकते जा रहे हैं। पिंडारी ग्लेशियर भी साल-दर- साल पीछे खिसक रहा है।

इस पर पर्यावरणविद् चिंतित हैं। मशहूर छायाकार पद्मश्री अनूप साह बताते हैं कि 60 साल पहले जहां जीरो प्वाइंट हुआ करता था, अब वहां भुरभुरे पहाड़ हैं। ग्लेशियर आधा किमी से अधिक पीछे जा चुका है ।पिंडारी ग्लेशियर की ट्रैकिंग कर लौटे राज्य वन्यजीव परिषद के सदस्य अनूप साह (75) और उनके साथी छायाकार धीरेंद्र बिष्ट (63) ने संवाद न्यूज एजेंसी से अपनी यात्रा के अनुभव साझा किए। पद्मश्री साह बताया कि 60 साल पहले उन्होंने पहली बार 1964 में पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा की थी, उस समय कपकोट से 115 किमी की पैदल दूरी तय करनी पड़ती थी। वर्तमान में खाती तक वाहन सुविधा होने से मात्र 31 किमी ही ट्रैकिंग करनी पड़ती है लेकिन पहले की अपेक्षा अब मार्ग अधिक खराब है। खाती से द्वाली तक भूस्खलन के कारण दूरी करीब तीन किमी बढ़ गई है।

कहा कि ग्लेशियरों के पीछे खिसकने का असर वन्यजीव-जंतुओं पर भी पड़ रहा है। क्षेत्र में दिखने वाले थार, भरल, सांभर, घुरड़, काकड़, सैटायर, ट्रैगोपान, मोनाल, पहाड़ी तीतर और सालम पंजा, सालम मिश्री, अतीस, कुटकी आदि का दिखना अब दुर्लभ हो गया है। हिम तेंदुआ और भालू जैसे जानवर अब चरवाहों की भेड़ों और घोड़ों को निवाला बनाने लगे है

अनूप साह अब तक 11 बार पिंडारी जा चुके है।

इससे पूर्व 1998 में वह पिंडारी ग्लेशियर गए थे। वह 1994 में ट्रेल पास, 1972 में नंदा खाट, 1972 और 2023 में बल्जूरी का सफल अभियान भी कर चुके हैं। उनके साथ गए धीरेंद्र बिष्ट ने इससे पूर्व 38 साल पहले पिंडारी गए थे। छायाकार बिष्ट ने बताया कि विगत 16 अक्तूबर को वह रानीखेत से रवाना होकर खाती पहुंचे थे जहां से द्वाली, फुर्किया को होते हुए 20 को जीरो प्वाइंट जाकर वापस लौटे और 22 अक्तूबर को बागेश्वर पहुंचे।

सीमेंट और कंक्रीट के इस्तेमाल से बचाना जरूरी

छायाकार साह और बिष्ट बताते हैं कि ट्रैकिंग रूट पर हो रहे निर्माण कार्य में सीमेंट और कंक्रीट का उपयोग, भारी- भरकम साइन बोर्ड लगाने से ग्लेशियर की सेहत पर असर पड़ रहा है। यहां स्थानीय संसाधन बांस, रिंगाल आदि का उपयोग किया जाना चाहिए। ट्रैकरों और सैलानियों को नियंत्रित करने, टूर गाइड को विधिवत प्रशिक्षण दिलाने, साइन बोर्ड में वास्तविक दूरी और ट्रैक रूट के अनुसार आवाजाही का टाइमिंग भी अंकित किया जाना चाहिए।

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बागेश्वर में हड़ताल से दूर रहे रोडवेजकर्मी डिपो की 5 बस्  अब भी खराब कलपूर्जे आने का इंतज़ार

परिवहन निगम के कर्मचारियों की हड़ताल का जिले में कोई असर नहीं दिखा। डिपो से सेवाओं का संचालन सुचारु रहा। डिपो की पांच खराब बसों की अब तक मरम्मत नहीं हो सकी है। कलपुर्जे नहीं होने से मरम्मत का काम अधर में लटका है।

त्योहारी सीजन शुरू हो गया है। दिवाली को लेकर प्रवासियों के घर लौटने की शुरूआत हो चुकी है लेकिन रोडवेज की खराब बसों की मरम्मत नहीं हो सकी है। डिपो की दो बसें 12 अक्तूबर, दो बसें 16 अक्तूबर और एक बस 21 अक्तूबर से खराब है।दो बसों की मरम्मत का कार्य अल्मोड़ा डिपो की कार्यशाला में चल रहा है। तीन बसों की मरम्मत रोडवेज डिपो में चल रही है। बुधवार से शुरू हुई परिवहन विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल का जिले मे कोई असर नहीं दिखा। लंबी दूरी की सभी सेवाओं का जिले से संचालन हुआ। बागेश्वर से धरमघर और मुनस्यारी के लिए बस नहीं चली।इधर, रोडवेज डिपो के कार्यशाला प्रभारी अनिल सिंह ने बताया कि जिले का कोई कर्मचारी हड़ताल पर नहीं है। डिपो में खड़ी बसों के पार्ट्स मंगवाए गए हैं। कलपुर्जे मिलने के दो दिन के भीतर बसों की मरम्मत हो जाएगी।

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