Mon. Dec 23rd, 2024
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

Radha Rani : बाकेबिहारी जी में क्यों बसते हैं श्री कृष्णा जी और राधा रानी के प्राण।

स्वामी हरिदास की उपासना से प्रसन्न होकर वृंदावन के निधि वन में बांकेबिहारी जी प्रकट हुए थे। बांकेबिहारी में श्रीकृष्ण और राधा दोनों का ही वास है। ऐसी मान्यता है कि बांकेबिहारी जी के दर्शन से सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्वामी हरिदास जी की उपासना से प्रसन्न होकर वृंदावन के निधि चन में बांकेबिहारी जी का प्रकट हुए थे। इस प्राकट्य उत्सव को ‘बिहार पंचमी’ के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान मंदिर को भव्य तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। वृंदावन, भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की लीलाओं से जुड़ी पावन भूमि है। बांकेबिहारी जी की मूर्ति का प्रकट होना एक अत्यंत चमत्कारिक और दिव्य घटना है, जो भक्तों के हृदय में भक्ति और श्रद्धा का संचार करती है।

प्रभु की छवि : मनोहर श्याम वर्ण छवि वाले श्रीविग्रह, श्रीकृष्ण और राधारानी सयुंक्त स्वरूप का प्रतीक हैं। बांकेबिहारी नाम का विशेष अर्थ है। ‘बांके’ यानी तीनों स्थानों से झुके हुए और ‘बिहारी’ नाम का अर्थ है- ‘वृंदावन में विहार करने वाले’। श्रीकृष्ण की यह मुद्रा भक्तों के लिए उनके प्रेम और लीलाओं की प्रतीक है। गोपियों संग रासलील रासलीला : संत हरिदास जी श्रीकृष्ण और राधारानी के अनन्य भक्त थे और वृंदावन के निधि वन में साधना करतेके थे। निधि वन के बारे में आज भी मान्यता है कि यहां हर रात राधा-कृष्ण गोपियों संग रासलीला करते हैं।

स्वामी हरिदास जी सखी-संप्रदाय के प्रवर्तक थे और वृंदावन में राधा-कृष्ण की लीलाओं का गान करते थे। वे अपने भक्ति-भाव में इतने लीन हो जाते थे कि उन्हें सांसारिक सुख-दुख का कोई ध्यान नहीं रहता था। मान्यता के अनुसार, स्वामी हरिदास जी को राधा जी की एक सखी का ही स्वरूप माना गया है, जिनका नाम ललिता था। प्रकट हुए राधा-कृष्ण : मान्यता के अनुसार, एक दिन जब स्वामी हरिदास भक्ति और प्रेम में डूबकर भजन गा रहे थे तो राधा-कृष्ण उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं उनके सामने प्रकट हुए। उन्होंने जब भगवान का यह दिव्य रूप देखा तो उनसे प्रार्थना की कि वे एक रूप में प्रकट होकर हमेशा भक्तों के बीच रहें। उनकी प्रार्थना पर राधा- कृष्ण ने एक दिव्य मूर्ति का रूप धारण किया। यह मूर्ति बांकेबिहारी जी के नाम से प्रसिद्ध हुई। पूरी होती हैं इच्छाएं : बांकेबिहारी मंदिर में स्थित मूर्ति की विशेषता यह है कि इसके दर्शन मात्र से भक्तों को राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम का अनुभव होता है।

स्वामी हरिदास ने बांकेबिहारी जी की इस दिव्य मूर्ति को निधि वन में स्थापित किया था। प्रारंभ में इस मूर्ति की पूजा निधि वन के भीतर होती थी। समय के साथ भक्तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए बांकेबिहारी जी का मंदिर बनाया गया। बांकेबिहारी जी के प्रकट होने की कथा भक्तों को यह संदेश देती है कि सच्ची भक्ति और प्रेम से भगवान को पाया जा सकता है। वृंदावन आने वाले हर भक्त के लिए यह स्थान भक्ति का अनोखा केंद्र है, जहां बांकेबिहारी जी स्वयं अपनी कृपा दृष्टि से भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। ऐसी मान्यता है कि विग्रह रूप में भगवान के दर्शन करने से सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *