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Semiconductor :सेमी कंडक्टर हब बनने की राह पर भारत।

Semiconductor : सेमी कंडक्टर हब बनने की राह पर भारत।

चीन के सेमीकंडक्टर बनाने वाले घटकों और तकनीकों पर अमेरिकी प्रतिबंध ने तूफान ला दिया है। लेकिन यह स्थिति भारत के अनुकूल है, क्योंकि अमेरिका और उसके जापान जैसे प्रमुख सहयोगी भी चीन को सेमीकंडक्टर हब बनने से रोकना चाहते हैं।

न के सेमीकंडक्टर बनाने वाले घटकों और तकनीकों पर अमेरिकी प्रतिबंध ने तूफान ला दिया है, जिसके चलते बदले और जवाबी कार्रवाई का नया दौर शुरू हो गया है। टैरिफ थोपने की इस बदले की नीति से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर असर पड़ा है और भू-राजनीति जटिल हो गई है। बाइडन प्रशासन ने 2022-2024 के दौरान चिप निर्माण और उससे संबंधित आपूर्ति श्रृंखलाओं में अमेरिकी दबदबा बनाए रखने के लिए मजबूत विधायी हस्तक्षेप किया है।

• अमेरिका ने सेमीकंडक्टर का आविष्कार किया, लेकिन अब वह दुनिया की आपूर्ति का लगभग 10 फीसदी का ही उत्पादन करता है। अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का उद्देश्य निर्यात को सीमित करना और उन्नत कंप्यूटिंग चिप, सुपर कंप्यूटर और उन्नत सेमीकंडक्टरों के चीनी विनिर्माण को नियंत्रित करना है। अमेरिकी प्रतिबंधों पर प्रतिक्रिया करते हुए चीन ने भी दो जवाबी कदम उठाए हैं। चीन ने अमेरिका को सेमीकंडक्टरों के उत्पादन के लिए जरूरी जर्मेनियम और गैलियम के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। बीजिंग ने इसकी शिकायत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भी की।

इससे पहले चीन ने दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक मुद्दों का हवाला देते हुए जापान को दुर्लभ धातुओं के पर प्रतिबंध लगा दिया था।इसके अलावा, चीन ने घरेलू आईटी उद्योग को 150 अरब डॉलर से ज्यादा की सब्सिडी देना शुरू किया। अन्य देश भी सब्सिडी का मार्ग अपना रहे हैं। यूरोप, जापान और भारत भी सेमीकंडक्टर पर सब्सिडी शुरू कर रहे हैं। सेमीकंडक्टर निर्माण का स्थान बदलने के साथ चिप निर्माण सामग्री का उत्पादन और आपूर्ति भी बढ़ेगी। महाशक्ति देशों के बीच तकनीकी श्रेष्ठता की इस प्रतिद्वंद्विता में भारत सेमीकंडक्टर उद्योग में छलांग लगाने का महत्वपूर्ण अवसर देखता है। पहले से ही चीन से पीड़ित माइक्रोन कंपनी 8.3 करोड़ डॉलर से अधिक के निवेश के साथ गुजरात में एक परीक्षण और पैकेजिंग केंद्र स्थापित कर रही है। ताइवान की टीएसएमसी और फॉक्सकॉन कंपनियां भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग में

प्रवेश के लिए सक्रिय ढंग से बातचीत कर रही हैं। तेजी से बढ़ता अमेरिका चीन सेमीकंडक्टर युद्ध भारत के लिए एक अवसर के रूप में आया है, जिसमें चरणबद्ध तरीके से वैश्विक उद्योग के स्थानांतरण, भारत की क्षमताओं के उन्नयन और आपूर्ति श्रृंखला का पुनर्गठन होगा। भारतीय नेतृत्व मानता है कि एक मजबूत सेमीकंडक्टर उद्योग के बिना, भारत चौथी औद्योगिक क्रांति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी नहीं हो सकता है। 2021 में, मोदी प्रशासन ने भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग के निर्माण और इसे वैश्विक सेमीकंडक्टर मूल्य श्रृंखला में जोड़ने के लक्ष्य के साथ भारत सेमीकंडक्टर मिशन (आईएसएम) लॉन्च किया। भारत की आर्थिक नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक, विशेषकर चीन के साथ बढ़ता व्यापार असंतुलन है।

सेमीकंडक्टर आयात भारत के व्यापार असंतुलन में महत्वपूर्ण योगदान देता है, जिसमें 2021-2023 के दौरान 92 फीसदी की वृद्धि हुई है। आईएसएम का लक्ष्य आयात पर निर्भरता को कम करना और इस रणनीतिक उद्योग में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है। अमेरिका-चीन के तकनीकी युद्ध ने भारतीय नीति निर्माताओं के लिए इस उद्योग के निर्माण की अनिवार्यता पैदा कर दी है।

उनका मानना है कि वर्तमान भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक रुझान नई दिल्ली के पक्ष में हैं, क्योंकि अमेरिका और उसके प्रमुख सहयोगी, जैसे जापान, चीन को सेमीकंडक्टर हब बनने से रोकना चाहते हैं। उनकी प्रमुख रणनीतियों में से एक समान विचारधारा वाले देशों के आधार पर आपूर्ति श्रृंखला बनाना है, और भारतीय नीति निर्माता भारत को उन उदार देशों के लिए एक स्वाभाविक भागीदार के रूप में देखते हैं, जो सेमीकंडक्टर उद्योग पर हावी हैं।

‘सेमीकॉन इंडिया, 2023 सम्मेलन के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी ने समान विचारधारा वाले लोकतांत्रिक देशों के बीच ‘विश्वसनीय मूल्य श्रृंखला’ बनाने में भारत के महत्व पर जोर दिया। भारत अपने चिप विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ अपनी भागीदारी और सहयोग बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। भारत ने अमेरिका, जापान और ताइवान के साथ अपने चिप सहयोग को मजबूत किया है।

भारत ने जनवरी 2023 में क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पहल के माध्यम से अमेरिका के साथ एक रणनीतिक साझेदारी स्थापित की, जिसका लक्ष्य लचीली सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना है। इसके अतिरिक्त, भारत सरकार ने पूरक सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र के लिए तत्काल और दीर्घकालिक अवसरों की पहचान करने के लिए एक टास्क फोर्स बनाकर भारत इलेक्ट्रॉनिक्स सेमीकंडक्टर एसोसिएशन और यूएस सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन के बीच संस्थागत सहयोग की सुविधा भी प्रदान की है।

भारत का लक्ष्य एक अग्रणी सेमीकंडक्टर शक्ति बनना है और इस लक्ष्य को पाने के लिए, यह एक मजबूत सेमीकंडक्टर प्रतिभा पूल विकसित करने की जरूरत को समझता है। यह भारत की तेजी से बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करेगा और सेमीकंडक्टर प्रतिभा की बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करेगा। दुनिया के लगभग 20 फीसदी सेमीकंडक्टर डिजाइन इंजीनियरों के साथ, भारत पहले दुनिया से ही इस उद्योग के लिए कार्यबल का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है। इसके अतिरिक्त, भारतीय विश्वविद्यालयों के कई विज्ञान और इंजीनियरिंग छात्र प्रमुख वैश्विक सेमीकंडक्टर कंपनियों के लिए काम करते हैं।

इसके अलावा, भारत दुनिया की की शीर्ष 25 सेमीकंडक्टर डिजाइन कंपनियों में से लगभग एक-चौथाई के अनुसंधान और विकास केंद्रों की मेजबानी करता है। सेमीकंडक्टर प्रतिभा केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए भारत सरकार ने कई पहल शुरू की हैं। मोदी-बाइडन शिखर सम्मेलन के दौरान, यह घोषणा की गई थी कि अमेरिकी कंपनी लैम रिसर्च भारत के सेमीकंडक्टर शिक्षा और कार्यबल विकास लक्ष्यों में तेजी लाने के लिए अपने ‘सेमीवर्स सॉल्यूशन’ के माध्यम से 60,000 भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षित करेगी।

मोदी प्रशासन ने भारत की औद्योगिक रणनीति को बदल दिया है, जो अब कोरिया की परखी हुई ‘रणनीतिक औद्योगिक नीति’ के काफी करीब है। कोरियाई और ताइवानी अनुभवों से सीखते हुए, भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इसे एक ‘रणनीतिक’ क्षेत्र के रूप में पहचाना है। केंद्र सरकार ने पीएलआई योजना के तहत प्रोत्साहन प्रदान किया है। नई पीएलआई योजना निजी खिलाड़ियों के लिए है, लेकिन सब्सिडी उनके प्रदर्शन, जैसे उत्पादन और निर्यात से जुड़ी हुई है। अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी प्रतिद्वंद्विता भारत को एक समान अवसर प्रदान कर सकती है।

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