Mon. Dec 23rd, 2024
newsamindia.com
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

Trouble with breathing: सांसों पर आफत कब तक

हवा अब भी नहीं सुधर रही

प्रकृति का संरक्षण हमारे संस्कारों में सहा है, लेकिन अपने स्वार्थ के लिए हम लगातार प्रकृति की सेहत से खिलवाड़ करते जा रहे हैं। भाना कि प्रदूषण के लिए सरकार की गलत नीतियां जिम्मेदार है. लेकिन क्या हम स्वयं प्रदूषण बढ़ाने वाले कारकों की रोकथाम के लिए कोई प्रयास कर रहे हैं। अगर हम पर्यावरण के प्रति गंभीर नहीं हुए और इसी तरह प्रदूषण बढ़ाने वाले कारका बढ़ते रहे तो भी दिन दूर नाहीं, जब हमारा सांस लेना मुश्किल हो नहीं, नामुमकिन हो जाएगा।

प्रकृति ने तो हमें साफ और स्वच्छ हवा दी है. लेकिन हमने जहर घोलकर इसे दमघोंटू बना दिया है। अब भी वक्त है कि हम इसे सुधारने के लिए गंभीर हो जाएं और प्रकृति से खिलवाड़ बंद कर दें। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और आसपास का इलाका आजकल भीषण वायु प्रदूषण की चपेट में है। शासन-प्रशासन के हाथ-पांव फूले हैं। हमारे देश में जिस रफ्तार से प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है, उसके लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति को गंभीरता से लागू करने की जरूरत है। प्रदूषण के कारण हमें कोई जानलेवा बीमारी होती है तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? अगर सरकार कोई कानून बना भी देगी तो क्या गंभीरता से उसका चालन होगा? प्रदूषण की विकराल होती समस्या को देखते हुए हमें जनजागरुकता पर विशेष ध्यान देना बाहिए। आम लोगों को इसकी भयावहता का अहसास कराना चाहिए। अगर हम गभीर बीमारी से जूझते रहेंगे तो फिर प्रकृति को दूषित करने को कीमत पर कमाए गए धन का का लाभ होगा? हमें इस मानसिकता से बहर निकलना होगा कि मेरे अकेले नियमों के पालन करने से क्या होगा। एक-एक को प्रयास करना होगा।

भविष्य की बुनियाद पर हो निर्माण

तमाम उत्नत तकनीक के बावजूद सपाट मैदानों में सड़कों का निर्माण बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। मौसम को जरा सी मार सब कुछ तहस-नहस कर देती है। राजस्थान के कचा में खारे पानी और दालदाल की चुनौतियों के बीच हाईवे निर्माण का काम कुछ ऐसा ही है। यह प्रयास स्थानीय लोगों को देश की जरूरतों को पूरा करने में एक निर्णायक पहल है।

आमतौर पर सरल, सपाट और पहाड़ी क्षेत्रों में बेहतर यातायात सुविधा के लिए सड़कों का निर्माण किया जाता है तो इसमें बड़ी सावधानी बरती जाती है, जिससे प्रकृति के थपेड़ों का कुशलता से सामना किया जा सके। त माला प्रोजेक्ट के तहत राजस्थान के चाखासर से गुजरात के मवासरी के बीच हो रहे 32 किलोमीटर लंबे हाईवे का निर्माण कार्य इस दिशा में एक मिसाल होगा। यह पूरी तरह खारे पानी और दलदल जमीन पर तैयार हो रहा है। यहां पानी औसत से कई गुना अधिक खारा और क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों के विपरीत है। इसमें भारी लागत भी आ रही है। सरकार करीब 325 करोड़ रुपये खर्च कर रही है।

इसमें 11 बड़े और 20 छोटे पुल बन रहे हैं। यह मार्ग सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि समीप ही पाकिस्तान की सीमा है, जहां सैन्य हलचाल के चलते वाहनों के काफिलों का आवागमन बना रहता है। इससे सड़क पर भारो यातायात का दबाव रहेगा। इसे ध्यान में रखते हुए निर्माण होना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई परेशानी न हो।

रैगिंग का राक्षस बेबस संस्थान

सरात नियमों के बाद भी रैगिंग पर पूरी तरह लगाम नहीं लग पा रही है। जब कोई मामला आता है तो चर्चा होती है, लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी देश के शिक्षण संस्थानों में रैगिंग हो रही है और इसमें छात्रओं को जान तक जा रही है। ताजा मामला गुजरात के पाटन जिले में धारपुर जीएमईआरएस मेडिकल कॉलेज में छात्र की मौत का है, जिसमें आरोप है कि रैगिंग के लिए एक छात्र को सीनियर चिट्ठी 3 छात्रों ने तीन घंटे तक खड़े रहने का निर्देश दिया था। इसी दौरान वह बेहोश हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। मामले में कॉलेज की रैगिंगरोधी समिति की जांच कर रही है।

Adani New Case : रिश्वत मामले में गौतम अदाणी और भतीजा जांच के लिए अमेरिका तलब

Almora New Accident : सल्ट में 21 लोगों से भरी निजी बस का टायर फटा, हादसा बचा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *