Mon. Dec 23rd, 2024
Oplus_0
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

India – China : कितने करीब कितने दूर 

कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच पांच वर्ष के बाद द्विपक्षीय वार्ता तभी संभव हुई, जब चीन सीमा पर अप्रैल, 2020 से पहले की स्थिति बहाल करने पर सहमत हुआ। करीब चार वर्ष से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जारी तनाव और गतिरोध के बीच भारत लगातार यह कहता रहा कि चीन ने सीमा पर स्थिति बदलने का एकतरफा प्रयास किया है, ऐसे में तनाव को खत्म करने और हालात सामान्य बनाने के लिए जरूरी है कि दोनों देशों की सेनाएं अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति में वापस जाएं। भारत ने यह भी साफ कर दिया था कि सीमा पर तनाव के बीच दोनों देशों के संबंध सामान्य नहीं हो सकते। संबंधों में सुधार की ताजा कोशिशों के बावजूद चीन के पूर्व के अतिक्रमणकारी रवैये को देखते हुए आगे भी उसकी मंशा पर शक की गुंजाइश बनी रहेगी। ऐसे में वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में चीन और भारत के संबंधों की दिशा और इसके संभावित भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रभावों की पड़ताल अहम मुद्दा है।

अब चीन पर भरोसा करना भारत के लिए होगा मुश्किल

वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पैदा हुए हालात को लेकर भारत और चीन के बीच हुआ समझौता वर्षों से चल रहे विवाद और तनाव को सुलझाने की दिशा में एक बहुत छोटा कदम है। लेकिन इसका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि लद्दाख सहित एलएसी पर जो तनाव था वह इस स्तर पर था कि कभी भी यह विस्फोटक रूप ले सकता था क्योंकि दोनों देशों की सेनाएं कई स्थानों पर आमने सामने खड़ी थीं। ऐसे हालात में इस बात की गुंजाइश काफी अधिक रहती है कि सेनाओं के बीच कभी भी • टकराव हो जाए जो एक बड़े संघर्ष का रूप ले ले। अगर तनाव कम होता है तो यह भारत के लिए भी और चीन के लिए भी अच्छी चीज है। दूसरी बात है कि भारत पहले भी कह चुका है कि वह चीन के साथ युद्ध या ऐसे हालात नहीं चाहता है, जिससे युद्ध की स्थिति बने। वहीं चीन चाहता था कि भारत को पीछे धकेला जाए, धौंस जमाई जाए। हालांकि वर्तमान परिदृश्य में चीन भी ऐसी स्थिति नहीं पैदा करना चाहता है, जहां भारत के साथ युद्ध की स्थिति पैदा हो जाए। तो यह चीन के हित में भी था। इसके अलावा दो तीन चीजें चीन को सता रहीं थीं। जैसे पिछले कुछ समय से अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चीन का प्रदर्शन कमजोर रहा है। चीन नहीं चाहता है कि ऐसे समय में जब उसको अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रयास करना है तो भारत के साथ सीमा पर तनाव का माहौल रहे क्योंकि इसका असर चीन और भारत के आर्थिक रिश्तों पर भी दाना दशा के बीच व्यापार बढ़ा है लेकिन गलवन के चियापार दास के बाद चीन की कंपनियों के लिए भारत में कारोबार करना आसान नहीं रह गया है। इसके अलावा चीन की कंपनियों के लिए भारत में निवेश करना कठिन हो गया है। ऐसा भारत सरकार के कड़े रूख की वजह से हुआ है। जाहिर है कि चीन को साफ दिख रहा था कि सीमा पर तनाव के बीच भारत के साथ आर्थिक रिश्ते फल-फूल नहीं सकते हैं।

दूसरी तरफ चीन के उत्पादों के लिए अमेरिका और यूरोप सबसे बड़े बाजार हैं। अमेरिका और यूरोप में चीन के उत्पादों को लेकर सख्ती बढ़ रही है। चीन के उत्पादों पर टैरिफ भी बढ़ाया जा रहा है। अभी चीन की अर्थव्यवस्था में भारत की यह अहमियत नहीं है, जो अमेरिका और यूरोप की है। भले ही भारत और चीन के बीच कारोबार 100 अरब डालर से ज्यादा का है लेकिन चीन के शीर्ष 10 ट्रेड पार्टनर की बात करें तो हमारा स्थान शीर्ष 10 के बाद ही आता है। अब अगर बड़े व्यापारिक साझीदार आप पर लगाम लगा रहे हैं

सुशांत सरीन सामरिक विशेषज्ञ

चीन ने 2020 में सीमा पर भारत के साथ विश्वासघात किया। उसने सीमा प्रबंधन से जुड़े समझौतों को ताक पर रख दिया था, ऐसे में भारत के लिए चीन पर भरोसा करना मुश्किल होगा। भारत को सीमा पर सैनिकों की तैनाती और सतर्कता का उच्च स्तर बनाए रखना होगा।

Gold and Silver new update : चांदी एक लाख के पार, सोने

भी नई ऊंचाई पर

Uttarakhand too Mumbai New train : कुमाऊं को मिला दिवाली का तोहफा

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *