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World War 3 : यह युद्ध कैसे खत्म होगा

यह सच है कि ईरान समर्थित प्रतिरोध की घुरी-हमास, हिजबुल्ला और हूती, इस्राइल को उकसाने वाले तरीके से हमला कर रहे हैं। लेकिन, देर-सबेर यह समझाना होगा कि इसाइल फलस्तीनी संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं है। पिछले 75 वर्षों में सैन्य श्रेष्ठता के बावजूद इस्राइल ने शांति और सुरक्षा हासिल नहीं की है।

विगत सात अक्तूबर को हमास के अकारण, भयानक आतंकवादी हमले का एक साल पूरा हो गया, जिसमें 1,200 से अधिक निदर्दोष, निहत्थे नागरिकों की हत्या की गई और 200 से अधिक लोगों को बंधक बनाया गया। यह घटना इस्राइल के लिए दुखद थी। अधिकांश पश्चिमी और कुछ भारतीय टीवी चैनलों ने उस भयावह रात को याद करते हुए और बचे हुए लोगों और उनके रिश्तेदारों से बात करके इस बारे में विस्तृत कवरेज दिया कि पिछले एक साल में वे अपने नुकसान और दुख से कैसे निपटे।

निर्दोष लोगों के मारे जाने पर गुस्सा, कड़वाहट, हताशा और पीड़ितों के रिश्तेदारों की भावनात्मक पीड़ा के लिए व्यापक सहानुभूति स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी। यह स्वाभाविक और समझ में आने वाला था। लेकिन जिस बात ने कई लोगों को निराश किया, वह यह थी कि मुट्ठी भर चैनलों को छोड़कर शायद ही किसी ने इस पर रिपोर्टिंग की कि गाजा के लोगों के लिए पिछला वर्ष कैसा रहा- बजुर्ग, महिलाएं और बच्चों ने न केवल अपने प्रियजनों को खोया, बल्कि अपना घर-बार भी खो दिया। उन्हें मवेशियों की तरह एक तरफ से दूसरी तरफ बिना भोजन, पानी और आश्रय के भटकने के लिए खदेड़ दिया गया। उन्हें हर समय इस्राइली बमों, मिसाइलों और ड्रोनों द्वारा मारे

जाने का डर सताता रहता है। न केवल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुखों, बल्कि अधिकांश सहायता एजेंसियों ने सुरेंद्र कुमार गाजा की तुलना कब्रिस्तान से की है। बीते वर्ष सात अक्तूबर को हमास ने जो किया, वह सभ्य समाज में स्पष्ट रूप से गलत और अस्वीकार्य था, भले ही फलस्तीनियों में 75 साल से इस्राइल के खिलाफ दबी हुई कड़वाहट, गुस्सा और नफरत हो, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस्राइल लगातार उनकी जमीन पर कब्जा कर रहा है और रोजाना उनका अपमान कर रहा है। हो सकता है कि यह सही भी हो, लेकिन उन्होंने जो तरीका चुना, वह पूरी तरह से गलत था।

आज आम फलस्तीनियों की जो दुर्दशा है, क्या हमास यही चाहता था? क्या इसके लिएहमास, या उसका आका ईरान खुद को माफ कर सकेंगे? उसी तरह नेतन्याहू का गुस्सा और दंड देने/बदला लेने की इच्छा काफी हद तक समझ में आती है, पर जिस लापरवाही से उन्होंने पूरे गाजा को नष्ट कर दिया है, 42,000 से अधिक फलस्तीनियों को मार डाला है, गाजा में 15 लाख लोगों को बेघर कर दिया है और उन्हें अकल्पनीय पीड़ा दी है, उसके बारे में क्या कहा जाए। क्या वह किसी उच्च नैतिक आधार का दांवा कर र सकते हैं?

नेतन्याहू ऐसे व्यवहार करते हैं, जैसे उन्हें कहीं भी किसी भी संख्या में फलस्तीनियों और अन्य अरब नागरिकों को मारने का लाइसेंस प्राप्त है। वह निर्दोष फलस्तीनियों की जान जाने और उनके घर-बार नष्ट करने के लिए हिटलर जैसी बेरुखी से बमबारी का आदेश देते हैं।

कई विश्व नेताओं का मानना है कि हजारों निर्दोष लोगों की हत्या करके, उनके घरों को नष्ट करके और 30 लाख लोगों (गाजा में 15 लाख और लेबनान में 15 लाख) को विस्थापित करके और उनके जीवन को नरक में बदलकर नेतन्याहू ने भी कोई कम बड़ा अपराध नहीं किया और शर्म की बात है कि विश्व समुदाय मूकदर्शक बना हुआ है, जबकि गाजा और लेबनान में हजारों निर्दोष लोगों को बिना किसी दंड के मारा जा रहा है।

उनके पास नरसंहार को रोकने के साधन हैं, लेकिन वे ऐसा नहीं करते। एक साल का समय बहुत लंबा होता है, अमेरिका इस्राइल को रोक सकता था, लेकिन उसने अपनी घरेलू राजनीति के चलते ऐसा नहीं किया। उस पर दोहरी भूमिका निभाने का आरोप है सार्वजनिक रूप से वह युद्ध विराम के लिए काम करने का दावा करता है, लेकिन इस्राइल को और अधिक हथियार और गोला-बारूद, की आपूर्ति भी करता है, जिसका इस्तेमाल फलस्तीनियों के खिलाफ किया जाता है। क्या बाइडन द्वारा इस्राइल को भरपूर समर्थन देने की बार-बार की घोषणा नेतन्याहू को अपना हमला जारी रखने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती है?

हालांकि, यह सच है कि ईरान समर्थित प्रतिरोध की धुरी-हमास, हिजबुल्ला और हुती, इस्त्राइल को उकसाने वाले तरीके से हमला कर राहे हैं। यह भी सच है कि इस्राइल की भू-राजनीतिक स्थिति ऐसी है कि वह अपने खिलाफ हो रहे षड्यंत्रों को हल्के में नहीं ले सकता। यह उसके अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न है। ऐसे में, क्या यह ओवामा द्वारा बड़ी मेहनत से तय की गई संयुक्त व्यापक कार्य योजना पर फिर से विचार करने का समय नहीं है, जिसके तहत ईरान ने अपनी परमाणु संवर्धन योजना को सीमित करने और परमाणु हथियार न बनाने का वचन दिया था? इससे अमेरिका- ईरान संबंधों में जो थोड़ी-बहुत नरमी दिखी थी, उसे ट्रंप ने परमाणु समझौते से बाहर निकलकर खत्म कर दिया। ईरानी वैज्ञानिकों, जनरलों की हत्या और ईरानी परमाणु सुविधाओं के पास अमेरिका की मौन सहमति से किए गए हमले ने दोनों देशों के बीच भरोसे को खत्म कर दिया।

 

ईरान द्वारा बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला (एक अक्तूबर) के बाद, कथित तौर पर ईरान के खिलाफ इस्राइली हमले के बारे में बाइडन-नेतन्याहू की फोन पर बातचीत से इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि अमेरिका और ईरान एक छद्‌म युद्ध में लगे हुए हैं। नेतन्याहू जानते हैं कि बाइडन अब एक कमजोर राष्ट्रपति हैं और राष्ट्रपति चुनाव के दोनों उम्मीदवार इस्त्राइल विरोधी रुख अपनाने का जोखिम नहीं उठा सकते। इसलिए वे हालात का फायदा उठाते हुए सीरिया सहित सात-आठ मोचों पर हमेला कर रहे हैं, उन्हें लगता है कि वे पूरे क्षेत्र को बम से उड़ाकर अपने कब्जे में कर सकते हैं। देर-सबेर नेतत्याह को यह समझना ही पड़ेगा कि इस्राइल-फलस्तीनी संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं है।

पिछले 75 वर्षों में सैन्य श्रेष्ठता के बावजूद इस्राइल ने शांति और सुरक्षा हासिल नहीं की है। फलस्तीनियों की अंधाधुंध हत्याएं आने वाली पीढ़ियों के लिए इस्राइल के शांतिपूर्ण भविष्य को भी खत्म कर रही हैं। इस्राइल और फलस्तीनियों के शुभचिंतकों को उन्हें हिंसा से दूर रहने और आपसी सम्मान, समझ, सामंजस्य और विश्वास तथा आत्मविश्वास पैदा करने के लिए निरंतर प्रयासों का विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। वेस्ट बैंक पर बस्तियों को बसने से रोकना और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 242 और ओस्लो समझौते का पूर्ण कार्यान्वयन, जिससे इस्राइल के साथ- साथ एक संप्रभु और स्वतंत्र फलस्तीनी मुल्क की स्थापना हो सके, इस क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति और सुरक्षा का एकमात्र रास्ता है।

 

 

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